हेट स्पीच विभिन्न संदर्भ व ब्लास्फ़ेमी/इशनिन्दा
(Hate Speech & Blaspheme various aspects )
क्या है हेट स्पीच? विधि आयोग के अनुसार हेट स्पीच के अंतर्गत नस्ल, जाति, लिंग, यौन-उन्मुखता (Sexual Orientation) आदि के आधार पर किसी समूह के खिलाफ घृणा फैलाने के कृत्य शामिल हैं। भय या घृणा फैलाने वाले अथवा हिंसा को भड़काने वाले भाषण का लिखित रूप में या बोलकर अथवा संकेत द्वारा प्रेषित किया जाना ही हेट स्पीच है। ईशनिंदा एवं हेट स्पीच ईशनिंदा- सामान्यत: ईशनिंदा का आशय किसी धर्म, मज़हब अथवा संप्रदाय के संबंध में नकारात्मक टिप्पणी करना या संबंधित धार्मिक अराध्यों, स्थलों और ग्रंथों पर अपमानजनक टिप्पणी करना होता है। इसके अंतर्गत धार्मिक प्रतीकों, धार्मिक कार्यों अथवा धार्मिक वेशभूषा इत्यादि के अपमान को शामिल किया जाता है। वर्तमान में भारत में इस संबंध में कोई स्पष्ट कानून नहीं है। हेटस्पीच- सामान्यत:हेट स्पीच का अभिप्राय धार्मिक अथवा जातिसूचक शब्दों का प्रयोग करते हुए विभिन्न समुदायों के मध्य चित्र, चल-चित्र, लिखित अथवा मौखिक संदेशों द्वारा घृणा या द्वेष फैलाना है। क्या है कानूनी व्याख्या? हेट स्पीच को लेकर अलग से कोई कानूनी व्याख्या नहीं है बल्कि अभिव्यक्ति की आज़ादी के अधिकार पर कुछ लगाम कसते हुए एक तरह से हेट स्पीच को परिभाषित किया गया है. संविधान के आर्टिकल 19 के मुताबिक अभिव्यक्ति की आज़ादी के अधिकार पर 8 किस्म के प्रतिबंध हैं. राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ दोस्ताना संबंध, लोक व्यवस्था, शालीनता या नैतिकता, कोर्ट की अवहेलना, मानहानि, हिंसा भड़काऊ, भारत की अखंडता व संप्रभुता... इनमें से किसी भी बिंदु के तहत अगर कोई बयान या लेख आपत्तिजनक पाया जाता है तो उसके खिलाफ सुनवाई और कार्रवाई के प्रावधान हैं. हेट स्पीच को लेकर अस्पष्टता • भारतीय कानूनी ढाँचे में हेट स्पीच को परिभाषित नहीं किया गया है। इसके स्वरूप में भिन्नता होने के कारण इसके लिये एक मानक परिभाषा तय करना भी कठिन है। • ‘अमीश देवगन बनाम भारत संघ (2020) मामले’ में उच्चतम न्यायालय ने ‘हेट-स्पीच’ को चिह्नित करने के लिये एक अन्य मानदंड जोड़ दिया है। न्यायालय के अनुसार, ‘अपनी पहुँच, प्रभाव और शक्ति को ध्यान में रखते हुए, जो प्रभावशाली व्यक्ति सामान्य जनता या संबद्ध विशिष्ट वर्ग के लिये कार्य करते हैं, उन्हें अधिक ज़िम्मेदार होना पड़ता है। हालाँकि, प्रभावशाली व्यक्तियों के लिये एक उच्च और अलग मानक दो भिन्न-भिन्न व्याख्याओं को जन्म दे सकता है, जिससे राज्य अपनी सुविधानुसार व्याख्याएँ कर सकता है। नकारात्मक पक्ष • हेट स्पीच या घृणा वाक् भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के समक्ष चुनौती उत्पन्न करता है। • यह सांप्रदायिक वैमनस्य को बढ़ावा देता है और देश के धर्मनिरपेक्ष ढाँचे को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करता है। • यह युवाओं में अतिवाद को बढ़ावा देता है। देखा गया है कि हेट स्पीच के प्रभाव में आकर कश्मीरी युवा देश विरोधी गुटों में शामिल हो जाते हैं। • हेट स्पीच से अल्पसंख्यकों के मन में असुरक्षा की भावना बढ़ती है और यह अल्पसंख्यकों तथा बहुसंख्यकों के बीच खाई को बढ़ाता है। • देश में हुए गोधरा दंगे, बाबरी विध्वंस आदि कहीं न कहीं हेट-स्पीच से जुड़ी या उसके द्वारा भड़काई गई घटनाएँ हैं। हेट स्पीच से संबंधित मामले • कर्नाटक उच्च न्यायालय ने ‘हेट स्पीच बनाम कर्नाटक राज्य (2020)’ मामले में यह विचार प्रकट किया कि भारतीय दंड संहिता उन भाषणों को अवैध घोषित करती है जिनका उद्देश्य विद्वेष को बढ़ावा देना या विभिन्न वर्गों के मध्य सद्भाव को प्रभावित करना है। • ‘प्रवासी भलाई संगठन बनाम भारत संघ (2014) मामले’ में उच्चतम न्यायालय ने लक्षित किये जाने वाले समुदाय द्वारा प्रतिक्रिया देने की क्षमता और हेट स्पीच के प्रोत्साहन के बीच संबंध को रेखांकित किया। • ‘जी. थिरुमुरुगन गांधी बनाम मद्रास राज्य’ (2019) मामले में मद्रास उच्च न्यायालय ने विचार व्यक्त किया कि घृणास्पद भाषण विभिन्न वर्गों के मध्य वैमनस्य का कारण बनते हैं और लोगों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से जुड़ी जिम्मेदारी को ध्यान में रखना चाहिये। • उच्चतम न्यायालय के अनुसार, इस तरह के प्रावधानों का उद्देश्य सांप्रदायिक और अलगाववादी प्रवृत्तियों की जाँच करना तथा बंधुत्व की रक्षा करना है ताकि व्यक्ति की गरिमा एवं राष्ट्र की अखंडता सुनिश्चित की जा सके। उलल्घन पर सज़ा इंडिया कानून पोर्टल पर दिए विवरण के हिसाब से भारतीय दंड विधान यानी आईपीसी के सेक्शन 153(A) के तहत प्रावधान है कि अगर धर्म, नस्ल, जन्मस्थान, रिहाइश, भाषा, जाति या समुदाय या अन्य ऐसे किसी आधार पर भेदभावपूर्ण रवैये के चलते बोला या लिखा गया कोई भी शब्द अगर किसी भी समूह विशेष के खिलाफ नफरत, रंजिश की भावनाएं भड़काता है या सौहार्द्र का माहौल बिगाड़ता है, तो ऐसे मामले में दोषी को तीन साल तक की कैद की सज़ा या जुर्माना या दोनों हो सकते हैं. सेक्शन 295(A) में तीन साल की सज़ा आईपीसी के सेक्शन 295(A) के तहत भी तीन साल तक की कैद या जुर्माना या दोनों की सज़ा का प्रावधान है. यह सेक्शन पिछले से इसलिए अलग है क्योंकि इसमें देश के किसी भी समुदाय की केवल धार्मिक भावनाएं आहत करने को लेकर व्यवस्था है. धार्मिक भावनाओं के अलावा किसी और किस्म के भेदभाव का ज़िक्र इस सेक्शन में नहीं है. सीआरपीसी - सेक्शन 95 क्रिमिनल प्रोसीजर कोड का सेक्शन 95 राज्य को अधिकार देता है कि वह किसी प्रकाशन विशेष को प्रतिबंधित कर सके. इस सेक्शन के मुताबिक सेक्शन 124ए, सेक्शन 153ए या बी, सेक्शन 292 या 293 और सेक्शन 295ए के तहत अगर कोई प्रकाशन (अखबार, किताब या कोई भी दृश्यात्मक प्रकाशन) आपत्तिजनक करार दिया जाता है तो केंद्र या भारत का कोई राज्य उसे प्रतिबंधित कर सकता है. विधि आयोग की सिफारिशें • ‘घृणा फैलाने पर रोक’ के लिये भारतीय दंड संहिता में संशोधन कर नई धारा 153(C) जोड़ी जाए।इसके लिये आयोग ने दो साल की कैद और जुर्माने के दंड की सिफारिश की है • IPC में एक नई धारा 505 (A) जोड़ी जाए, जो ‘कुछ मामलों में भय, अशांति या हिंसा भड़काने’ के कृत्यों से जुड़ी हो। इसके लिये आयोग ने एक साल की कैद और जुर्माने अथवा बिना जुर्माने की सिफारिश की है। विधि आयोग ने विचार व्यक्त किया है कि हिंसा के लिये उकसाने को ही नफरत फैलाने वाले बयान के लिये एकमात्र मापदंड नहीं माना जा सकता। ऐसे बयान जो हिंसा नहीं फैलाते हैं उनसे भी समाज के किसी हिस्से या किसी व्यक्ति को मानसिक पीड़ा पहुँचने की संभावना होती है। अन्य सुझाव • सोशल मीडिया से घृणा फैलाने वाली सामग्री पर निगरानी रखने और हटाए जाने के उपाय किये जाने चाहिये। • लोगों में तर्कसंगत सोच का विकास करने की आवश्यकता है, ताकि वे किसी भी चीज़ पर बिना सोचे-समझे विश्वास न करें। • अपने वक्तव्यों से धार्मिक उन्माद फैलाने वाले नेताओं और धर्मगुरुओं को चिह्नित कर उनके भाषणों की निगरानी की जानी चाहिये और हेट स्पीच के दोषियों पर कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिये। धारा 295(A) का मुद्दा धारा 295(A) की पृष्ठभूमि • भारतीय दंड सहिंता (IPC) की धारा 295(A)उन अपराधों के लिये न्यूनतम तीन वर्ष के कारावास का उपबंध करती है, जिसमें पूर्व नियोजित और दुर्भावनापूर्ण इरादे सेनागरिकों के धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान करने के उद्देश्य से मौखिक,लिखित या प्रतीकात्मक संदेशों का प्रयोग किया जाता है। • हालाँकि, भारत में ईशनिंदा के खिलाफ कोई औपचारिक कानून नहीं है किंतु उक्त धारा को ईशनिंदा कानून के निकटतम समकक्ष माना जा सकता है। • भारतीय दंड सहिंता की धारा-295(A) का इतिहास लगभग 95 वर्ष पुराना हैं। वर्ष 1927 में मोहम्मद पैगम्बर के निजी जीवन के संबंध में एक व्यंग्य प्रकाशित किया गया था।किंतु तत्कालीन लाहौर उच्च न्यायालय ने इस लेखन से किसी भी समुदाय के बीच विद्वेष न पैदा होने के आधार पर लेखक को न्यायिक कार्यवाही से बरी कर दिया था। • न्यायालय के अनुसार, यह गतिविधि आई.पी.सी. की धारा-153(A) के तहत नहीं आती है, जो सार्वजनिक शांति/व्यवस्था बनाए रखने से संबंधित है। • उल्लिखित घटनाक्रम ने धार्मिक सम्मान तथा पवित्रता से संबंधित नियमों एवं कानूनों की मांग पर ध्यान आकर्षित किया, जिसके बाद भारतीय दंड सहिंता में धारा-295(A) को शामिल किया गया। • धारा 295(A) की वैधता की सर्वप्रथम पुष्टि उच्चतम न्यायालय की पांच सदस्यीय पीठ ने रामजी लाल मोदी वाद (1957) में की गई। न्यायालय के अनुसार- “अनुच्छेद 19(2) द्वारा सार्वनिक व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर युक्तियुक्त प्रतिबंध लगाए गए हैं,जबकि भारतीय दंड सहिंता की धारा 295(A) के तहत सजा किसी समुदाय की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने के उद्देश्य से किये गए कार्य (ईशनिंदा) से संबंधित है”। कानून की व्याख्या • शीर्ष अदालत ने रामजी लाल मोदी मामले में निर्धारित परीक्षण को फिर से परिभाषित किया। • अधीक्षक, केंद्रीय कारागार, फतेहगढ़ बनाम राम मनोहर लोहिया वाद में उच्चतम न्यायालय ने तय किया कि किसी मामले को आई.पी.सी. की धारा 295(A) के अंतर्गत आने के लिये भाषण और इसके परिणामस्वरूप होने वाली किसी भी सार्वजनिक अव्यवस्था के बीच घनिष्ठ संबंध होना चाहिये। • वर्ष 2011 तक यह निष्कर्ष निकाला गया कि गैरकानूनी कार्रवाई को उकसाने वाले भाषण को ही दंडित किया जा सकता है। ईशनिंदा और हेट स्पीच संबंधी कानूनों में अंतर की आवश्यकता • धारा295(A)की भाषा काफी व्यापक है और यह नहीं कहा जा सकता है कि धर्म या धार्मिक संवेदनाओं का विचारपूर्वक अनादर करना अनिवार्य रूप से उकसाने के समान है। उच्चतम न्यायालय के अनुसार धारा 295(A) में हेट स्पीच के क़ानून का लक्ष्य शायद पूर्वाग्रह को रोकना और समानता सुनिश्चित करना है। • हालाँकि, इसधारा की वास्तविक भाषा और व्याख्याके बीच व्यापक असमानता होने के कारण इस कानून का अभी भी दुरूपयोग किया जा रहाहै। • धर्म या धार्मिक शख्सियतों का अपमान करने पर विवाद या निंदा हो सकती है किंतु इसेकानूनी रूप से अवैध या मुकदमा नहीं चलाया जाना चाहिए।
