क्लासिकल डांसर

क्लासिकल डांसर
कत्थक
बिरजू महाराज (Birju Maharaj)
- बिरजू महाराज का वास्तविक नाम बृजमोहन नाथ मिश्रा है इनका जन्म 9 फरवरी 1938 को लखनऊ, उत्तर प्रदेश में हुआ।
- बिरजू महाराज भारतीय नृत्य ‘कत्थक’ के आचार्य और लखनऊ के ‘कालका बिंदादीन’ घराने के एक मुख्य प्रतिनिधि हैं।
- उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘पद्म विभूषण’ (1986) और कालीदास सम्मान समेत अनेक पुरस्करों से सम्मानित किया गया। उन्हें ‘बनारस हिन्दु विश्वविद्यालय’ और ‘खेरागढ़ विश्वविद्यालय’ से ‘डॉक्टरेट’ की मानद उपाधि भी मिल चुकी है।
- ताल और घुंघरूओं के तालमेल के साथ कत्थक नृत्य पेश करना आम बात है, लेकिन जब ताल की थापों और घुंघरूओं की रूझान को महाराज के मात्रर्य में तब्दील करने की बात हो, तो बिरजू महाराज के अतिरिक्त कोई नाम नहीं याद आता।
- बिरजू महाराज ने बचपन से ही अपने पिता अच्छन महाराज से शिक्षा प्राप्त करनी आरम्भ कर दी थी। उनकी मृत्यु के बाद उनके चाचाओं, सुप्रसिद्ध आचार्यो शंभू और लच्छू महाराज से प्रशिक्षिण लेना आरम्भ कर दिया।
- मात्र 16 वर्ष की आयु में बिरजू महाराज ने अपनी पहली प्रस्तुति दी।
- शास्त्रीय नृत्य में बिरजू महाराज फ्यूजन से नहीं घबराए । उन्होंने लुईस बैंक के साथ रोमियो और जूलिएट की कथा को कत्थक शैली में प्रस्तुत किया।
- इनका फिल्मों से गहरा नाता रहा है। इन्होंने कई फिल्मों में गीतों का नृत्य निर्देशन किया है।
- अपना परिशुद्ध ताल और भावपूर्ण अभिनय के लिए बिरजू महाराज ने एक नई शैली विकसित की। जिसमें पदचालन की सूक्ष्मता और गर्दन मुख के चालन को अपने पिता और विशिष्ट चाल प्रवाह को अपने चाचा से प्राप्त करने का दावा करते हैं।
- न केवल नृत्य के क्षेत्र में बल्कि भारतीय शास्त्रीय संगीत पर भी उनकी गहरी पकड़ है। ठुमरी, दादरा, भजन, गजल गायकी में उनका कोई जवाब नहीं है। वे कई वाद्य भी बखूबी बजाते हैं। तबला, सितार, सरोद और सारंगी बजाते हैं। खास बात है कि उन्होंने इन वाद्य यंत्रों को बजाने की विधिवत् शिक्षा नहीं ली।
पंडित दुर्गालाल (Pandit Durga Lal)
- पंडित दुर्गा लाल का जन्म 21 जनवरी 1948 को महेन्द्रगढ़, राजस्थान में हुआ। वे जयपुर घराने के प्रसिद्ध कत्थक नर्तक थे।
- कत्थक के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए भारत सरकार द्वारा चौथे उच्चतम नागरिक पुरस्कार पद्मश्री से सम्मानित किया गया। 1984 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार दिया गया।
- ‘दुर्गा लाल जी सुंदर प्रसाद जी के शिष्य थे। कत्थक नर्तक के साथ-साथ वह एक गायक भी थे और पखगज भी बजाते हैं।
- इनके भाई पंडित देवी लाल भी प्रसिद्ध कत्थक नर्तक थे। दोनों भाईयों की छोटी उम्र में मृत्यु हो गई थी।
- 1989 के नृत्य नाटक ‘घनश्याम’ में उन्हें मुख्य भूमिका निभाने के लिए जाना जाता है। जिसमें संगीत रविशंकर द्वारा दिया गया था और बर्मिंघम ओपेरा के द्वारा निर्मित किया गया।
- दुर्गालाल कत्थक नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ कत्थक नृत्य ( कत्थक केंद्र) में भी पढ़ा चुके हैं।
रोशन कुमारी ( Roshan Kumari)
- रोशन कुमारी का जन्म 24 दिसम्बर को अम्बाला, हरियाणा में हुआ। वह एक भारतीय शास्त्रीय नृत्यांगना हैं उनका नाम कत्थक के नामचीन कलाकारों में लिया जाता है।
- वह जयपुर घराने का अनुसरण करती हैं।
- इन्होंने कत्थक को बढ़ावा देने के लिए 1971 में नृत्यकला केन्द्र मुम्बई की स्थापना की। जहां इन्होंने मुक्ता जोशी, अदिती भागवत, नंदिता पुरी, अनेना ग्रहा और शैल्ला अरोड़ा जैसे उल्लेखनीय छात्रों को पढ़ाया था।
- वे बचपन से ही नृत्य के लिए आकर्षित रही। संगीत उनके घर में था, क्योंकि उनके पिता श्री फकीर चंद्र मोहम्मद तबला वादक और पखवाज के प्रसिद्ध गायक थे तथा माता जोहरा बेगम प्रसिद्ध पार्श्व गायिका थीं।
- उन्होंने गुरू श्री सी. के. मोरे, पंडित सुंदर प्रसाद, पटियाला के गुलाम हुसैन खान, जयपुर के पंडित हनुमान प्रसार और सर्वश्री गोविंदराज वाली और महालिंगम पिलाई के तहत कत्थक तथा भरतनाट्यम का अध्ययन किया।
- उन्हें राष्ट्रपति भवन में अपनी कला प्रस्तुत करने का अवसर मिला।
- रोशन कुमारी को प्रयाग संगीत समिति से 1963 में ‘नृत्य शिरोमणी’ का खिताब दिया गया। 1976 में ‘राष्ट्रपति नरकट अकादमी’ (जयपुर घराना) का पुरस्कार प्राप्त हुआ। 1984 में पद्मश्री का सम्मान मिला। उन्हें महाराष्ट्र गौरव पुरस्कार दिया गया। इसके अलावा भी उन्हें काफी पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।
- उन्होंने फिल्मों में भी कोरियोग्राफर के रूप में काम किया है जैसे गोपी (1970), लेकिन (1990), चैताली (1975) और सरदार बेगम (1996) आदि ।
- 1970 में भारत सरकार के फिल्म डिवीजन के कत्थक के इतिहास और अभ्यास पर एक वृतचित्र जारी किया गया जिसमें उल्लेखनीय कत्थक प्रजोवनों में दमयंती जोशी, उमा शर्मा, सुदर्शन धीर और शंभु महाराज के साथ रोशन कुमारी भी शामिल थी।
सितारा देवी (Sitara Devi)
- सितारा देवी का जन्म 8 नवम्बर 1920 को हुआ। वे भारत की प्रसिद्ध कत्थक नृत्यांगना थी। इनका मूल नाम धनलक्ष्मी था।
- सितारा देवी ने मात्र 10 वर्ष की आयु से ही नृत्य करना आरम्भ कर दिया था। नृत्य के शौक के कारण सितारा देवी को स्कूल की पढ़ाई भी छोड़नी पड़ी।
- मुम्बई में उन्होंने रविन्द्रनाथ टैगोर तथा सरोजनी नायडू के समक्ष कत्थक नृत्य प्रस्तुत किया। रविन्द्रनाथ टैगौर उनके नृत्य से इतना प्रभावित हुए कि मात्र 16 वर्ष की आयु में उन्हें ‘नृत्य सम्रागिनी’ का खिताब दे दिया।
- सितारा देवी ने अपनी कला का प्रदर्शन न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी किया। उन्होंने कई फिल्मों में भी काम किया।
- वे पद्मश्री, कालिदास सम्मान, संगीत नाटक अकादमी और नृत्य निपुणों जैसे सम्मान से सम्मानित हो चुकी हैं।
- सितारा देवी भरतनाट्यम के अलावा भारत के कई लोक नृत्य, रशियन बैलेत तथा पश्चिमी नृत्य शैली भी जानती थी।
- लंबी बिमारी के बाद 25 नवम्बर 2014 को सितारा देवी का मुम्बई में निधन हो गया।
उमा शर्मा (Uma Sharma)
- उमा शर्मा एक प्रशंसनीय कत्थक नर्तक हैं। उनका जन्म 1942 को ढोलपुर में हुआ।
- उन्होंने नटवारी नृत्य या वृन्दावन की रासलीला के पुराने शास्त्रीय नृत्य रूप को पुनर्जीवित किया। जिसे कला के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान माना जाता है।
- वह वर्तमान में भारतीय संगीत सदन चलाती है। जो उनके पिता द्वारा चलाई गई नृत्य और संगीत अकादमी है।
- कला के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए 1973 में उन्हें पद्मश्री दिया गया। 2001 में पद्मभूषण दिया गया। हाल ही में 2013 में उन्हें अखिल भारतीय विक्रम परिषद, काशी द्वारा शीर्षक से श्री जन मनीली प्राप्त हुई थी। संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार और साहित्य कला परिषद पुरस्कार आदि सम्मान भी उन्हें दिए गए।
- उन्होंने गुरू हिरलालजी और जमपुर गृहाना के गिरवर दयाल से कत्थक में प्रारम्भिक प्रशिक्षण प्राप्त किया था। बाद में उन्होंने जयपुर घराना के लिए पंडित सुंदर प्रसार से प्रशिक्षण लिया।
- उन्होंने शंभू महाराज और बिरजू महाराज के अधीन भी प्रशिक्षण लिया। हालांकि उन्होंने लयवक्ष फुटवर्क और पंडित सुन्दर प्रसाद ने इसके क्रम परिवर्तन को सीखते हुए, बाद में उन्हें अभिनय की कला सिखाई।
- उषा शर्मा ने देश के अलावा विदेशों में भी प्रदर्शन किया।
- उषा शर्मा ने पारंपरिक वस्तुओं की प्रस्तुति को सीखने के बाद, उन्होंने विभिन्न प्रकार के विषयों पर नई संख्याओं और पूर्ण लंबाई के नृत्य नाटकों का निर्माण करके कत्थक के प्रदर्शनों को चौड़ा किया।
उर्मिला नगर (Urmila nagar)
- उर्मिला नागर का नाम कत्थक के अग्रणी कलाकारों में लिया जाता है। वे एक संगीतकार परिवार से ताल्लुक रखती हैं।
- वह भारत के कुछ कलाकारों में से एक हैं जो एक उत्कृष्ट नर्तक और प्रतिष्ठित गायक दोनों हैं।
- वह भारत सरकार द्वारा स्थापित प्रमुख संस्थान के कत्थक नेशनल इंस्टीट्यूट में निदेशक और वरिष्ठ गुरू भी थे। कत्थक के प्रति उनके अमूल्य योगदान के लिए भारत के राष्ट्रपति द्वारा संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित निदेशक हैं। हो चुकी हैं।
- उर्मिला जी ने नृत्य निर्देशों के लिए कई कोरियोग्राफ और संगीत दिया है।
- वह दर्शकों के बीच अपने चमकदार फुटवर्क, मधुर आवाज तथा अभिनय के लिए जानी जाती है।
- यह अखिल भारतीय रेडियो के एक नियमित कलाकार हैं। उन्होंने आकाशवाणी और साहित्य कला परिषद, दिल्ली द्वारा आयोजित संगीत समारोहों में काफी भाग लिया है।
कुचिपुड़ी
कल्पालतिका (Kalpalathika)
- कल्पालतिका डॉ० विप्पत्ति चिन्न सत्यम की शिष्य है, जो कुचिपुड़ी कला अकादमी के संस्थापक तथा निदेशक हैं।
- उन्हें सबसे कम उम्र की कुचिपुड़ी नर्तक के रूप में जाना जाता है जिसे एक अमेरिकी विश्वविद्यालय ने नृत्य का एक दौरा करने वाले प्रोफेसर के रूप में आमंत्रित किया।
- वे मूलरूप से वंजावुर के जमींदार परिवार से हैं। उन्हें कुचिपुड़ी नृत्य के लिए प्रशंसित किया गया।
- 18 वर्षों की अवधि से कुचिपुड़ी के क्षेत्र में शासन कर रही हैं। वर्ष 1989 में अपने गुरू के साथ भारत महोत्सव जो रूस में आयोजित किया गया था, में कुचिपुड़ी नृत्य प्रस्तुत किया। 1991 में जर्मनी में प्रदर्शन किया। उनकी प्रतिभा के लिए उन्हें कुचिपुड़ी शैली नृत्य में ‘सर्वश्रेष्ठ नस्कर पुरस्कार दिया गया। 1993 में प्रतिष्ठित कृष्ण गण सभा मद्रास में पुरस्कार दिया गया।
- वह अन्तर्राष्ट्रीय समारोह में कुचिपुड़ी नृत्य प्रस्तुत करती रही हैं। उन्होंने 4 महीने में 57 शहरों में 58 कुचिपुड़ी नृत्य को प्रदर्शन किये हैं।
- वर्तमान में वह चेन्नई में सोंदरहारी विद्यालय नृत्य की
राजा और राधा रेड्डी (Raja & Radha Reddy)
- राजा रेड्डी का जन्म 6 अक्टूबर 1943 को तथा राधा रेड्डी का जन्म 15 फरवरी 1955 को हुआ। दोनों ही कुचिपुड़ी
- नर्तकों को भारतीय शास्त्रीय नृत्य में जाना पहचाना नाम है।
- उन्हें कुचिपुड़ी नृत्य का पर्यायवाची माना जाता है। दोनों ने मिल कर इस नृत्य को संसार के सांस्कृतिक मानचित्र पर लाने के लिए बहुत परिश्रम किया है।
- कला के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री और पद्मभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया है।
- वे एकमात्र परिवार है जो नृत्य के लिए पूरी तरह समर्पित है- राजा उनकी दो पत्नियाँ और दो बेटियाँ
- राजा रेड्डी तथा राधा रेड्डी दोनों ने ही कोरियोग्राफी में डिप्लोमा किया है। दोनों को कुचिपुड़ी में उनके योगदान के लिए हैदराबाद विश्वविद्यालय द्वारा मानद डॉक्टरेट की उपाधि प्रदान की गई है।
- राजा और राधा टेड्डी फ्रांस के अन्तर्राष्ट्रीय नृत्य महोत्सव और सात्जबर्ग (आस्ट्रिया) और भारत के त्यौहारों में सयुंक्त राष्ट्र अमेरिका में प्रदर्शन करने वाले पहले भारतीय है।
- राजा और राधा रेड्डी ने नाट्य तरंगिनी संस्थान कुचिपुड़ी नृत्य शुरू किया जो साकेत दिल्ली में स्थित है।
शोभा नायडू (Shobha Naidu)
- शोभा नायडू भारत की प्रमुख कुचिपुड़ी नर्तकियों में से एक हैं। और प्रसिद्ध स्वामी वे पाटी चिन्ना सत्यम की एक उत्कृष्ट शिष्य हैं।
- उन्होंने देशभर तथा विदेशों में अपने गुरू के मंडल के साथ प्रदर्शन किया है।
- वह एक उत्कृष्ट एकल नर्तक भी हैं। वह कुचिपुड़ी लॉ अकादमी हैदराबाद के प्रधानाध्यापक के रूप में पिछले कुछ सालों से प्रशिक्षण दे रही हैं।
- उन्होंने कई नृत्य नाटक निर्देशित किए हैं।
- नायडू को न केवल भारत में प्रशंसा मिली बल्कि उनकी कला को सम्पूर्ण संसार में सराहा गया। उन्होंने यूके, यू. एस. ए. सीरिया, तूर्की, हांगकांग, बगदाद, काम्प्रशिया. बैकांक आदि में विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम में भारत का प्रतिनिधित्व किया है।
- 2001 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया। 1982 में नृत्य चुड़ामनी पुरस्कार प्राप्त हुआ। 1991 में कुचिपुड़ी के लिए संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ। 1996 में नृत्य शिरोमणी पुरस्कार दिया गया। 1998 में स्वर्गीय श्री एन टी रामाराव पुरस्कार दिया गया।
- उन्होंने भारत और विदेशों में 2000 से अधिक छात्रों को नृत्य प्रशिक्षण दिया है।
यामिनी रेड्डी (Yamini Reddy)
- यामिनी रेड्डी का जन्म 1 सितम्बर 1982 को हुआ। वे कुचिपुड़ी नर्तक डॉ० राजा रेड्डी और राधा रेड्डी की सुपुत्री हैं।
- केवल तीन वर्ष की आयु से ही अपने माता पिता से प्रशिक्षण लेना आरम्भ कर दिया था। उन्हें अपने पिता के ‘तांडव’ और माँ का ‘लस्य’ विरासत में मिला है, जो उनकी शैली में स्पष्ट है।
- यामिनी एक युवा नर्तक हैं जिन्होंने न केवल भारत बल्कि यूनाइटेड किंगडन, फ्रांस, अमेरिका, दक्षिण पूर्व एशिया, रूस और संयुक्त अरब अमीरात का दौरा किया है।
- उन्हें युवा रत्न पुरस्कार, युवा वोकेशनक एक्सीलेंस पुरस्कार, FICCI युवा अचीवर पुरस्कार देवदासी राष्ट्रीय पुरस्कार, और संगीत नाटक अकादमी बिसमिल्लाह खान युवा पुरस्कार कुचिपुड़ी नृत्य के प्रति समर्पण के लिए दिए गए हैं।
- दुनिया भर में प्रदर्शन के अलावा यामिनी रेड्डी हैदराबाद शाखा में नाट्यतरंगिनी नृत्य स्कूल में कुचिपुड़ी पढ़ रहे हैं।
भरतनाट्यम
बालासरस्वत्ती (Balasaraswati)
- बालासरस्वती का जन्म 13 फरवरी 1918 को चैन्नई में हुआ। उनका पूर्ण नाम तंजौर बालासरस्वती था । वे भरतनाट्यम की एक मशहूर नर्तक के रूप में प्रसिद्ध थीं।
- भारत में बल्कि अन्य कई देशों में भी इस नृत्य शैली को लोकप्रिय बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- 1977 में भारत सरकार द्वारा उन्हें पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया। उन्हें संगीत कलानिधि का खिताब भी दिया गया।
- भारतीय फिल्मकार सत्यजीत रे ने उन पर एक वृतचित्र भी बनाया।
- उन्होंने अपनी इस कला का प्रदर्शन मंदिरों से लेकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर किया। सात साल की आयु में कांचीपुरम के मंदिरों में दर्शकों को अपने नृत्य कला से मन्त्रमुग्ध कर दिया।
- बालासरस्वती ने 1960 के दशक के पूर्वाध में अंतर्राष्ट्रीय पहचान हासिल की। इस दौरान उन्होंने अपनी कला का प्रदर्शन एशिया, यूरोप और उत्तर अमेरिका में किया।
- बालासरस्वती की मृत्य 9 फरवरी 1984 को हुई।
मृणालिनी साराभाई (Mrinalini Sarabhai).
- मृणालिनी साराभाई का जन्म 11 मई 1918 को केरल में हुआ।
- उनकी मृत्यु 21 जनवरी 2016 को अहमदाबाद, गुजरात में हुई थी।
- मृणालिनी साराभाई शास्त्रीय नृत्यांगना थीं उन्हें ‘अम्मा’ के नाम से जाना जाता था। शास्त्रीय नृत्य में उनके योगदान तथा उपलब्धियों के लिए उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया गया।
- प्रसिद्ध ‘दपर्णा अकादमी’ की स्थापना मृणालिनी साराभाई ने ही की।
- मृणालिनी साराभाई ने मीनाक्षी सारा सुंदरय पिल्लई से भरतनाट्यम का प्रशिक्षण लिया था और फिर दक्षिण भारतीय शास्त्रीय नृत्य तथा पौराणिक गुरू था। काजी कुचू कुरूप से कथकली के शास्त्रीय नृत्य नाटक में प्रशिक्षण लिया।
- उनके पति विक्रम साराभाई सुप्रसिद्ध भौतिक वैज्ञानिक थे। उनकी बेटी मल्लिका साराभाई भी प्रसिद्ध नृत्यांगना तथा समाजसेवी हैं।
- उनकी बड़ी बहन लक्ष्मी सहगल स्वतंत्रता सेनानी थी। जो आजाद हिंद फौज की महिला सेना झाँसी रेजीमेंट की कमांडर इन चीफ थीं।
- मृणालिनी साराभाई को पद्मभूषण के साथ-साथ पद्मश्री उन्होंने न केवल से भी सम्मानित किया गया। ‘यूनिवर्सिटी ऑफ ईस्ट एंगलिया, नॉविच यूके’ ने उन्हें डाक्टरेट की उपाधि दी। इंटरनेशनल डाँस काउंसिल पेरिस की ओर से उन्हें एग्जीक्यूटिव कमेटी के लिए नामित किया गया।
रूक्मिणी देवी (Rukmani Devi)
- इस महान भरतनाट्यम नर्तकी का जन्म 28 फरवरी 1904 को मदुरई के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ।
- इन्होंने भरतनाट्यम शैली में नृत्य की एक नई परम्परा को आरम्भ किया। 1920 के दशक में भरतनाट्यम को अच्छी नृत्य शैली नहीं माना जाता था और लोग इसका विरोध करते थे। तब भी इन्होंने इसका समर्थन किया और साथ ही इस कला को अपनाया।
- उन्होंने इस कला को सीखकर पहली बार 1935 में जुबली हॉल में जनसाधारण के सामने मंच पर नृत्य प्रस्तुत किया।
- 1956 में इन्हें पदूभूषण से सम्मानित किया गया। 1967 में संगीत नाटक अकादमी फेलोशिप भी दिया गया।
- इन्होंने भरतनाट्यम की शिक्षा गौरी अम्मा तथा पांडानुल्लुर मीनाक्षी सुन्दरम से ली।
- इसके साथ-साथ ही इन्होंने कलाक्षेत्र नामक प्रशिक्षण संस्थान की स्थापना चैन्नई में की। जहाँ नृत्य तथा संगीत का प्रशिक्षण दिया जाता था।तमाम विरोधों के बावजूद रुक्मिणी देवी ने अपने पति किया गया है। जॉर्ज अरूदले के साथ मिलकर भरतनाट्यम की इस कला को आगे बढ़ाया।
सोनल मानसिंह (Sonal Mansingh)
- सोनल मानसिंह का जन्म 30 अप्रैल 1944 को मुम्बई में हुआ । वे एक नृत्यागना के साथ-साथ सामजिक कार्यकर्त्ता, विचारक, शोधकर्त्ता, वक्ता, कोरियोग्राफर तथा शिक्षिका हैं। ओडिसी तथा भरतनाटयूम दोनों तरह के नृत्यों में माहिर हैं।
- उन्हें भरतनाटयूम का प्रशिक्षण प्रो. यू. एस. कृष्णराव और चन्द्रमगा देवी से प्राप्त किया। • उन्होंने विभिन्न गुरूओं से ओडिसी नृत्य सीखा है।
- सोनल मानसिंह नर्तक के साथ-साथ प्रशिक्षित हिन्दूस्तानी शास्त्रीय गायक भी हैं। उन्होंने प्रो. के. जी. गिन्गे से शास्त्रीय संगीत सीखा है।
- इस बहुमुखी नर्तकी ने दिवंगत मैलपुर के अभिनय में विशेष प्रशिक्षण प्राप्त किया है।
- वे एक प्रशिक्षित कुचिपुड़ी नर्तकी भी हैं।
- वह छऊ और भारतीय संगीत की विशेषज्ञ हैं। उन्होंने कई भारतीय पौराणिक कथाओं के माध्यम से कई नृत्य कलाएँ बनाई हैं।
- वह अपने नृत्य के माध्यम से पर्यावरण की बचत, महिलाओं की मुक्ति जैसे मामले पेश करती हैं तथा इन सामाजिक मुद्दों पर नृत्य के माध्यम से अपनी चिंता व्यक्त करती हैं।
- इन्होंने 1977 में दिल्ली पर आधारित भारतीय शास्त्रीय नृत्य ( सी आई सीडी) केन्द्र की स्थापना की। यहाँ वे भारतीय शास्त्रीय नृत्य का छात्रों को प्रशिक्षण देती है।
- सोनल भारत की सबसे बड़ी संस्था इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केन्द्र की ट्रस्टी भी हैं।
- 1992 में इन्हें राष्ट्रपति द्वारा पद्मभूषण से सम्मानित किया गया और वह सबसे कम उम्र में पद्मभूषण पाने वाली महिला भी हैं।
इसके अलावा भी उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित
i. गायक मणि
द्वितीय। नृत्य चूडामणि, मद्रास
तृतीय। राज्य पुरस्कार दिल्ली
iv. नाटक कला रत्न, दिल्ली
v. राष्ट्रीय पुरस्कार, संगीत नाटक अकादमी, दिल्ली
vi. इन्द्रा प्रियदर्शिनी पुरस्कार, दिल्ली
vii. सनातन नृत्य पुरस्कार
आठवीं पद्मविभूषण 2003
ix. पद्मभूषण 1992
x. प्रकाश झा ने उन पर ‘सोनल’ नाम की एक डाक्यूमेन्टरी भी बनाई है।
मोहिनीअट्टम
कलामंदिर राधिका (Kalamandalam Radhika)
- कलामंदलम राधिका का जन्म बैंगलोर में हुआ। वह एक प्रतिष्ठित भारतीय शास्त्रीय नृत्यांगना, कोरियाग्राफर के रूप में जानी जाती हैं।
- उन्हें मोहिनीअट्टम के राजपूत के रूप में जाना जाता है। मोहिनीअट्टम के लिए प्रतिष्ठित केरल संगीता गैर निवासी केरलवादी थी।
- तीन वर्ष की आयु में ही उन्होंने गुरू राजन से नृत्य लेनी प्रारम्भ कर दी थी।
- उन्होंने मठ श्री श्री से कत्थकली सीखा।
- उन्होंने राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत और विदेशों में 2000 से अधिक प्रदर्शन किए हैं।
- वह यूनेस्को इंटरनेशनल डाँस काउंसिल के प्रतिष्ठित सदस्य हैं। उन्होंने डब्लयू. एच. ओ. प्रतिनिधियों, सार्क प्रतिनिधियों, कई राजनायिकाओं, सोवियत प्रतिनिधियों के लिए प्रदर्शन किए हैं।
- मोहिनीअट्टम ने कला शैली की गहराई का पता लगाने के लिए उन्होंने मोहिनीअट्टम पर व्यापक शोध किए हैं।
पल्लवी कृष्णन (Pallavi Krishnan)
- पल्लवी मोहिनीअट्टम की बहुमुखी कलाकार हैं। उन्होंने एक जीवंत परम्परा नृत्य की इस शैली को आगे बढ़ाया है,
- पल्लवी जी ने आरम्भ में गुरू कलामंडल शंकर नारायणन के अंतर्गत भरतनाट्यम, मोहिनीअट्टम और कत्थकली का प्रशिक्षण लिया है।
- उन्होंने शांतिनिकेतन (विश्व भारती विद्यालय) से नृत्य ( कत्थकली) में अपना स्नातक पूरा किया है।
- उन्होंने केरल कलामंडलम से मोहिनीअहम में अपनी पोस्ट ग्रेजुएशन (M.A) की ।
- इस प्रकार वह एकमात्र भारतीय नर्तक हैं जो इन दो प्रतिष्ठित राष्ट्रीय कला अकादमियों की पूर्व छात्र हैं।
- उन्होंने गुरू भारती शिवाजी और गुरू कलामंडलम सुगंधी के बीच अपनी बढ़ाई जारी रखी।
- उनके असंगत शिक्षण ने दुनिया भर के छात्रों को आकर्षित किया है।
- वह मोहिनीअट्टम में उनके योगदान के लिए केरल राज्य संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार सहित कई सम्मान प्राप्तकर्ता हैं।
सुनंदा नायर (Sunanda Nair)
- वह वर्तमान में अपने गुरू पद्मभूषण डा० कनक रीले के मार्गदर्शन में नृत्य में एक शोध विद्वान हैं।
- सदी की शुरूआत में ‘इंडिया टुडे’ प्रमुख समाचार कृष्णन पत्रिका ने सुनंदा को देश के 50 होनहार नतृकियों में से एक बताया।
- उन्होंने सोवियत संघ उत्तरी कोरिया, सिंगापुर, बहरीन, दोहा, आबूधाबी, मसकट, दुबई, कुवैत, आस्ट्रेलिया, अमेरिका आदि कई देशों में अपनी कला का प्रदर्शन शैली को किया है।
- सुनंदा जी सरकार की सांस्कृतिक शाखा की एक प्रतिष्ठित कलाकार हैं। उन्होंने प्रतिष्ठित राष्ट्रीय त्यौहारों पर, जैसे सैन्ट्रल संगीत नाटक अकादमी नृत्य महोत्सव, प्रतिष्ठित खजुराहो त्यौहार, कोनार्क उत्सव उडीसा, सूरीया परम्परा त्यौहार त्रिवेन्द्र, सूरीया मोहिनीअहम त्यौहार, मैसूर महल – दसरे त्यौहार आदि में आपने प्रदर्शन किया है।
- कलाम सुनंदा नायर कलामंडलम से मोहिनीअट्टम नृत्य कला की प्रमुख कलाकार हैं। उनका जन्म मुंबई में हुआ था।
- सुनंदा मोहिनीअट्टम में नायर मास्टर डिग्री प्राप्त करने वाली भारत प्रथम की छात्रा हैं। वह मुंबई विश्वद्यिालय से संबद्ध नालंदा नृत्यिका महाविद्यालय की एक छात्रा रही जहाँ उन्होंने
मिश्रित नृत्यिकी
इंद्रणी रहमान (Indrani Rahman)
- इंद्रणी रहमान का जन्म 19 सितम्बर 1930 को चेन्नई में हुआ। वह एक शास्त्रीय नर्तकी थीं। जो भरतनाट्यम, कुचिपुड़ी, कत्थकली और ओडिसी सभी प्रकार के नृत्य के लिए जानी जाती हैं।
- उन्होंने अपने परम्परागत नृत्य का प्रशिक्षण 9 वर्ष की आयु से ही प्रारम्भ कर दिया था।
- 1952 में उन्होंने मिस इंडिया का भी खिताब जीता था।
- 1940 में गुरू चोक्लिंगलिंग (पिल्लो) से भरतनाट्यम की पांडानुल्लुर शैली सीखी।
- 1961 में वह पल्ली नर्तक थी। जो एशिया सोसायटी द्वारा एक राष्ट्रीय दौरे पर गई तथा उन्होंने नेहरूजी तथा अमेरिकी प्रसीडेंड जॉन एफ कैनेडी के सामने नृत्य पेश किया।
- 1947 में इंद्राणी ने भारत के प्रमुख नृत्य और कला समीक्षक डॉ. चार्ल्स फेन्री के साथ मिल कर ओडिसी नृत्य के रूपों को सीखा। इससे वह पहली पेशेवर ओडिसी नर्तकी बनीं।
- इंद्राणी 1976 में अमेरिका में सेटल हो गई थी। उन्होंने एलिजाबेथ, फिदेल कास्त्रों, निकिता खुश्वेव के सामने परफॉर्म किया है।
- उनके इसी योगदान के चलते 1969 में उन्हें पद्मश्री अवॉर्ड दिया गया। 1981 संगीत नाटक अकादमी अवॉर्ड मिला।
- 1999 में इंद्राणी की मृत्यु मैनहटन में हो गई।
मल्लिका साराभाई (Mallika Sarabhai)
- मल्लिका साराभाई का जन्म 1954 में अहमदाबाद गुजरात में हुआ। वे विक्रम साराभाई तथा मृणालिनी साराभाई की बेटी थी।
- वे एक मशहूर भरतनाट्यम कुचिपुड़ी नर्तकी, मंच अभिनेत्री तथा सामाजिक कार्यकर्ता हैं।
- इन्होंने 1974 में आइ. आई एम अहमदाबाद से एम बीए तथा 1976 में गुजरात यूनिवर्सिटी से डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की।
- मल्लिका नर्तकी के साथ-साथ कुछ हिन्दी, मलयालम, गुजराती तथा अंतर्राष्ट्रीय फिल्मों में भी काम कर चुकी हैं।
- उन्हें अपने कैरियर के दौरान कई अवार्ड प्राप्त हुए हैं। जिनमें गोल्डन स्टार आवार्ड भी शामिल है।
- मल्लिका ने सामाजिक परिवर्तन के लिए विशेष रूप की फिल्म की और भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार एल. के. आडवाणी के खिलाफ गाँधी नगर लोकसभा सीट के लिए उम्मीदवारी की घोषणा की।
- मल्लिका साराभाई भारत के साथ-साथ विदेशों के प्रमुख महोत्सवों में भी भाग लेती रहती हैं।
यामिनी कृष्णामूर्ति
- यामिनी कृष्णामूर्ति का जन्म 20 दिसम्बर 1940 को मदनपल्ले, आंध्रप्रदेश में हुआ। वह भरतनाट्यम तथा कुचिपुड़ी शैली की एक प्रसिद्ध नर्तक हैं।
- वह एक प्रख्यात परिवार से ताल्लुक रखती थी। उनके पिता एम. कृष्ण मूर्ति संस्कृत विद्वान तथा दादा उर्दू कविता के विशेषज्ञ थे।
- यामिनी को कलाक्षेत्र स्कूल ऑफ डांस, चैन्नई में 5 वर्ष की आयु में भरतनाट्यम के छात्र के रूप में नामांकित किया गया। उनका प्रारम्भिक प्रशिक्षण रूकमणी देवी अरूडेल के अधीन हुआ।
- उन्होंने तंजाबुर कितापा पिल्लई, धदुयुघापनी पिल्लई और मैलापुर गौरी अम्मा जैसे प्रसिद्ध स्वामी के अधीन उच्च शिक्षा प्राप्त की।
- उन्होंने वेदांत लक्ष्मी नारायण शास्त्री चिटा कृष्णमूर्ति और पुस्मैथी वेणुगोपाल कृष्ण शर्मा के अधीन कुचिपुड़ी की शिक्षा ली।
- भरतनाट्यम तथा कुचिपुड़ी के अलावा उन्होंने पंकज चरण दास तथा केलूचरण महापात्र से ओडिसी सीखा।
- एम. डी. रामनाथन द्वारा कर्नाटक के मुखर संगीत की शिक्षा ली तथा वीणा को कल्पगम स्वामीनाथन से सीखा था।
- केवल सत्रह वर्ष की आयु में वे प्रशंसित नर्तकियों में से एक बन गई। राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण भूमिका निभाई तथा भारत के आंध्रप्रदेश के एक एकल नृत्य रूप में उभर कर आई।
- बहुआयामी कलाकार यामिनी को 1968 में पद्मश्री और 1977 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ।
- 1990 में उन्होंने ‘यानी स्कूल ऑफ डाँस’ की शुरूआत की। उन्होंने एक पुस्तक ‘ए पैशन ऑफ डाँस’ लिखी।
- वर्तमान में यामिनी एक बैले पर काम कर रहीं है । जिसका शीर्षक ‘द गाँधीवादी आर्डर ऑफ लाईफ’ और दूसरा टैगोर और सुबमण्ड भारती पर और देवी काली का चित्रण है।
उदय शंकर (Uday Shankar)
- उदयशंकर का जन्म 8 दिसम्बर 1900 को हुआ।
- वह एक भारतीय शास्त्रीय नर्तक थे। जो नृत्य की संलयन शैली के लिए जाने जाते हैं।
- 1962 में उन्हें संगीत नाटक अकादमी, भारत की नेशनल एकेडमी फॉर म्यूजिक, डाँस एंड ड्रामा द्वारा सम्मानित किया गया। उन्हें सर्वोच्च पुरस्कार, संगीत नाटक अकादमी फैलोशिप फॉर लाईफटाइम अचीवमेंट अवार्ड दिया गया। 1971 में उन्हें पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया।
- उदय शंकर के पास भारतीय शास्त्रीय नृत्य रूपों में से किसी का भी औपचारिक प्रशिक्षण नहीं था। फिर भी उनकी प्रस्तुतियाँ रचनात्मक होती थीं।
- उन्होंने शास्त्रीय नृत्य तथा लोक नृत्य दोनों शैली के तत्वों को साथ लाकर एक नई शैली का निर्माण किया जिसे ‘हाथ शैली’ कहा गया। बाद में इसे क्रिएटिव डाँस कहा जाने लगा।
- उदय शंकर ने अपने नृत्य नाटकों में विभिन्न परम्पराओं और तकनीकों का सार प्रयोग किया और एक एकीकृत रचना पेश की है।
- वे शास्त्रीय नर्तक के साथ-साथ चित्रकार भी थे। उन्होंने बांम्बे में जे. जे. स्कूल ऑफ आर्ट में शिक्षा ली है। 1920 में लंदन के रॉयल कॉलेज ऑफ आर्ट में पेंटिंग का अध्ययन किया है।
- 1938 उदय शंकर ने उत्तर प्रदेश के अल्मोडा में नृत्य विद्यालय खोला। जो बाद में ‘उदय शंकर भारतीय संस्कृति केंद्र’ के नाम से जाना गया। जो द्वितीय विश्व युद्ध के समय बंद हो गया फिर बाद में कलकत्ता में इसे पुनः स्थापित किया गया।


भारत के प्रमुख शास्त्रीय नृत्य और नृत्यकार
1). कत्थक | Kathak Dancers
उत्तर प्रदेश – बिरजू महाराज, लच्छू महाराज, मालविका सरकार, शोभना नारायण, शंभू महाराज, अच्छन महाराज, सितारा देवी, भारती गुप्ता, दमयंती जोशी, बिंदादीन महाराज, कालका प्रसाद, चंद्रलेखा, सरस्वती सेन, गोपीकृष्ण, सुखदेव महाराज आदि।
2). भरतनाट्यम | Bharatanatyam Dancers
तमिलनाडु – सोनल मानसिंह, यामिनी कृष्णमूर्ति, वैजयंतीमाला बाली, मालविका सरकार, रूक्मणी देवी, एस.के. सरोज, पद्मा सुब्रम्हण्यम, मृणालिनी साराभाई, लीला सेमसन, टी. बाल सरस्वती, राम गोपाल आदि।
3). कुचिपुड़ी | Kuchipudi Dancers
आंध्रप्रदेश – राधा रेड्डी, राजा रेड्डी, यामिनी कृष्णमूर्ति, स्वप्न सुंदरी बेम्पति चन्नासत्यम, वेदान्तम् सत्यनारायण, लक्ष्मी नारायण शास्त्री आदि।
4). कथकली | Kathakali Dancers
केरल – मृणालिनी साराभाई, शांताराव, कृष्ण नायर, कृष्णन कुट्टी, आनंद शिवरामन, उदय शंकर, बल्ललोत, नारायण मेनन आदि।
5). ओडिसी | Odissi Dancers
ओडिशा – इन्द्राणी रहमान, सोनल मानसिंह, माधवी मुद्गल, संयुक्ता पाणिग्रही, किरण सहगल, रानी कर्ण, कालीचरण पटनायक, प्रियंवदा मोहन्ती, मिनाती दास, शेरोन लोवेन, मिर्ता बाखी आदि।
6). मणिपुरी | Manipuri Dancers
मणिपुर – झावेरी बहनें (दर्शना, नयना, सुवर्णा, रंजना), रीता देवी, चारू माथुर, विपिन सिंह, आतम्ब सिंह, निर्मला मेहता, साधन बोस, नलकुमार सिंह, कलावती देवी, थम्बल यामा, अमली सिंह आदि।
7). मोहिनीअट्टम | Mohiniyattam Dancers
केरल – हेमा मालिनी, श्रीदेवी, रागिनी देवी, शांताराव, भारती शिवाजी, तारा निडुगाडी, शेषन मजूमदार, तंकमणि, गाता नायक आदि।