1857 का विद्रोह
पहला भारतीय स्वाधीनता संग्राम :
अवधि : 1857 की ग्रीष्म ऋतु में लॉर्ड कैनिंग के वायसरॉय के कार्यकाल के दौरान यह घटना घटी । इसे 1857 का विद्रोह या सैन्य द्रोह अथवा पहला स्वाधीनता संग्राम भी कहा जाता है । मेरठ का विद्रोह तथा दिल्ली पर कब्जा , एक व्यापक सैन्य विद्रोह तथा पूरे उत्तरी तथा साथ ही मध्य तथा पश्चिमी भारत में विद्रोह की भूमिका तैयार हुई । दक्षिण शांत रहा तथा पंजाब व बंगाल इससे आंशिक रूप से प्रभावित हुए । कम्पनी के सिपाहियों की कुल संख्या 2,32,224 में से लगभग आधों ने अपने रेजीमेटल ‘ कलर ‘ के प्रति निष्ठा न रखने की घोषणा की तथा लम्बे समय से अनुशासन के एवं मेहनत से | तैयार की गई सेना की विचारधारा को तिलांजलि दे दी ।
1857 का विद्रोह भले ही असफल रहा हो परंतु इससे विदेशी शासन को समाप्त करने केलिए एक महान प्रयास प्रारंभ हो गया । दिल्ली पर कब्जे तथा बहादुरशाह को भारत का शासक ( शहंशाह – ए – हिंदुस्तान ) बनाए जाने से इस विद्रोह को अर्थ प्रदान किया और विद्रोही सैनिकों को इस शाही नगर की प्राचीन गरिमा के साथ जुड़ने के लिए एक मजबूत आधार मिल गया ।
विद्रोह के कुछ प्रमुख कारण :
- आर्थिक शोषण तथा देश के परम्परागत ढाँचे का विनाश ।
- डलहौजी का व्यपगत का सिद्धान्त ( Coctrine of Lapse ) , जिसके कारण देशी रजवाड़े नष्ट हो गए थे ।
- ब्रिटिश शासन का स्वरूप अनुपस्थित प्रभुसत्ता ( Absentee soverigntyship ) | इसके तहत यहाँ से एकत्रित किया गया धन ( Revenue ) , यहां खर्च न कर ब्रिटेन भेजना |
- ब्रिटिश प्रजातीय श्रेष्ठता ( Racial superiority ) की नीति के तहत उन्होंने भारतीयों के साथ अपमानजनक व्यवहार किए तथा सैनिक – असैनिक क्षेत्रों में उच्च पदों पर उनके लिए प्रतिबंध लगाया ।
- ब्रिटिश राज्य द्वारा स्थापित शांति की नीति ( Pax Britannica ) : इसके कारण भारतीय रियासतों की सेनायें भंग हो गईं , तथा इन सेनाओं से निवृत्त सैनिकों पिण्डारी तथा ठगी जैसे समाज विरोधी कार्यों में लग गए । विद्रोह के दिनों में इन्हें स्वर्ण अवसर मिला और उन्होंने विद्रोहियों की संख्या में वृद्धि की ।
- अंग्रेज सेनाओं की अपराजयेता का भ्रम टूटना ।
- ईसाई मिशनरियों की गतिविधियाँ तथा ब्रिटिश सरकार द्वारा उनको दिया गया संरक्षण |
- 1850 में पारित ‘ धार्मिक अयोग्यता अधीनियम ‘ ( Religous Disabilities Act ) । इसके अनुसार धार्मिक परिवर्तन से पुत्र अपने पिता की सम्पत्ति से वंचित नहीं किया जा सकता था ।
- सैनिकों को अपने जाति या पंग के चिन्हों के उपयोग पर प्रतिबंध तथा 1856 का सामान्य भर्ती अधिनियम ( General Service Enlistment Act ) । इस अधिनियम के तहत सैनिकों को आवश्यकता पड़ने पर समुद्र – पार भेजा था । भारतीय मान्यताओं के अनुसार यात्रा पाप थी , तथा दंड स्वरूप उन्हें जाति से बाहर कर दिया जाता था ।
- 1854 का डाक घर अधिनियक ( post office Act ) के पारित होने पर सैनिकों की निःशुल्क डाक सुविधा समाप्त हो गई ।
- चर्बी मिले कारतूसों ( Greased cartridges ) का प्रयोग | इस कारतूसों पर लगे खोल को दाँतों से काटना होता था । गाय तथा सुअर की चर्बी से निर्मित होने की वजह से सैनिकों को अपना धर्म भ्रष्ट होने की आशंका को बल मिला । इन कारतूसों का प्रयोग ने भारतीय सैनिकों तथा जनता में संचित हो रही असंतोष को चिंगारी प्रदान की ।
विद्रोह की असफलता के कारण :
1857 के विद्रोह की असफलता के प्रमुख कारण निम्नवत् हैं
- यह विद्रोह स्थानीय , असंगठित एवं सीमित था । बम्बई एवं मद्रास की सेनायें तथा नर्मदा नदी के दक्षिण के राज्यों ने विद्रोह में अंग्रेजों का समर्थन किया । राजस्थान में कोटा एवं अलवर के अतिरिक्त शेष स्थानों पर विद्रोह का कोई प्रभाव नहीं था । सिन्ध भी पूर्णतया शान्त था ।
- अच्छे साधन एवं धनाभाव के कारण भी यह विद्रोह असफल रहा । अंग्रेजी अस्त्र – शस्त्र के समक्ष भारतीय , अस्त्र – शस्त्र बौने साबित हुए ।
- 1857 के इस विद्रोह के प्रति ‘ शिक्षित वर्ग ‘ पूर्ण रूप से उदासीन रहा । यदि इस वर्ग ने अपने लेखों एवं भाषणों द्वारा लोगों में उत्साह का संचार किया होता तो निःसन्देह विद्रोह का परिणाम कुछ और होता ।
- इस विद्रोह में ‘ राष्ट्रीय भावना ‘ का सचमुच अभाव था क्योंकि भारतीय समाज के सभी वर्गों का सहयोग इस विद्रोह को नहीं मिल सका । सामन्तवादी वर्गों में एक वर्ग ने विद्रोह सहयोग किया परन्तु पटियाला , जीन्द , ग्वालियर एवं हैदराबाद के राजाओं ने विद्रोह को कुचलने में अंग्रेजों का सहयोग किया ।
- विद्रोहियों में अनुभव , संगठन क्षमता व मिलकर कार्य करने की शक्ति की कमी थी ।
- सैनिक दुर्बलता का विद्रोह की सहफलता में महत्वपूर्ण योगदान हैं बहादुरशाह जफर एवं नाना साहब एक कुशल संगठन कर्ता अवश्य थे , पर उनमें सैन्य नेतृत्व की क्षमता की कमी थी , वहीं अंग्रेजी सेना के पास लारेन्स बन्धु , निकल्सन , हैवलॉक , आउट्रम एवं एड्वर्क्स जैसे कुशल सेनानायक थे
- विद्रोहियों के पास उचित नेतृत्व का अभाव था । वृद्ध मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर विद्रोहियों का उस ढंग से नेतृत्व नहीं कर सका जिस तरह के नेतृत्व की तत्कालीन परिस्थितियों में आवश्यकता थी ।
- विद्रोहियों के पास ठोस लक्ष्य एवं स्पष्ट योजना का अभाव था । उन्हें अगले क्षण क्या करना होगा यह निश्चित न था , वे मात्र भावावेश एवं परिस्थितिवश आगे बढ़े जा रहे थे ।
- आवागमन एवं संचार के साधनों के उपयोग से अंग्रेजों को विद्रोह को दबाने में काफी सहायता मिली और इस प्रकार आवागमन एवं संचार के साधनों ने भी इस विद्रोह को असफल करने में सहयोग दिया ।
1857 के विद्रोह के परिणाम :
1857 के विद्रोह के दूरगामी परिणाम रहे । इस विद्रोह के प्रमुख परिणाम निम्नवत् हैं
( 1 ) विद्रोह के समाप्त होने के बाद 1858 में ब्रिटिश संसद ने एक कानून पारित कर ईस्ट इंडिया कम्पनी के अस्तित्व को समाप्त कर दिया और अब भारत पर शासन का पूरा अधिकार महारानी के हाथों में आ गया । इंग्लैण्ड में 1858 के अधिनियम के तहत एक ‘ भारतीय राज्य सचिव की व्यवस्था की गयी , जिसकी सहायता के लिए 15 सदस्यों की एक ‘ मंत्रणा परिषद् बनाई गयी । इन 15 सदस्यों में 8 की नियुक्ति सरकार द्वारा करने तथा 7 की कोर्ट ऑफ डाइरेक्टर्स द्वारा चुनने की व्यवस्था की गई ।
( 2 ) महारानी विक्टोरिया के आदेशानुसर क्षेत्रों के अन्धाधुन्ध विस्तार की नीति को त्याग दिया गया , स्थानीय राजाओं को उनके गौरव एवं अधिकारों को पुनः वापस करने की बात कही गयी और साथ ही धार्मिक शोषण खत्म करने एवं सेवाओं में बिना भेदभाव के नियुक्ति की बात की गयी ।
( 3 ) 1861 में ‘ भारतीय जनपद सेवा अधिनियम ( Indian Civil Service Act ) पास हुआ । इसके अनुसार प्रत्येक वर्श लन्दन में एक प्रतियोगी परीक्षा आयोजित करने की व्यवस्था की गयी , जिससे संश्रावित जनपद सेवा में भर्ती हो सके ।
( 4 ) सेना पुनर्गठन के आधार यूरोपीय सैनिकों की संख्या को बढ़ाया गया , उच्च सैनिक पदों पर भारतीयों की नियुक्ति को बंद हो गया । अब सेना में भारतीयों एवं अंग्रेजों का अनुपात 2 : 1 का हो गया । उच्च जाति के लोगों में से सैनिकों की भर्ती बंद कर दी गई ।
( 5 ) 1858 के अधिनियम के अन्तर्गत ही भारत में गवर्नर जनरल के पद में परिवर्तन कर उसे ‘ वायसराय ‘ का पद बना दिया गया ।
( 6 ) विद्रोह के फलस्वरूप सामंतवादी ढाँचा चरमरा गया , आम भारतीय में सामंतवादियों की छवि गद्दारों की हो गई , क्योंकि इस वर्ग ने विद्रोह को दबाने में अंग्रेजों को सहयोग दिया था ।
( 7 ) विद्रोह के परिणामस्वरूप भारतीयों में राष्ट्रीय एकता की भावना का विकास हुआ और हिन्दू – मुस्लिम एकता ने जोर पकड़ना शुरू किया , जिसका कालान्तर में राष्ट्रीय आंदोलन में अच्छा योगदान रहा ।
( 8 ) 1857 के विद्रोह के बादसाम्राज्य विस्तार की नीति का तो खत्मा हो गया परन्तु इसके स्थान पर अब आर्थिक शोषण केयुग का आरम्भ हुआ
( 9 ) भारतीयों के प्रशासन में प्रतिनिधित्व के क्षेत्र में अल्प प्रयास के अन्तर्गत 1861 में भारतीय परिषद् अधिनियम को पारित किया गया ।
इसके अतिरिक्त इसाई धर्म के प्रचार – प्रसार में कमी आई , श्वेत जाति की उच्चता के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया गया , मुगल साम्राज्य के अस्तित्व को सदैव के लिए खत्म कर दिया गया आदि 1857 के विद्रोह के परिणाम थे ।
1857 का विद्रोह
भारतीय नायक ( विद्रोह के ) | समय ( विद्रोह का ) | केन्द्र | ब्रिटिश नायक ( विद्रोह दबाने के ) | समय ( विद्रोह दबाने का ) |
बहादुरशाह जफर एवं जफर बख्त खां , कार्यकारी सेनापति ( सैन्य नेतृत्व ) | 11 , 12 मई , 1857 | दिल्ली | निकलसन , हडसन | 21 सितम्बर , 1857 |
नाना साहब एवं तात्या टोपे | 5 जून , 1857 | कानपुर | कैंपबेल | 6 सितम्बर , 1857 |
बेगम हजरत महल | 4 जून , 1857 | लखनऊ | कैंपबेल | मार्च 1858 |
रानी लक्ष्मीबाई एवं तात्या टोपे | जून, 1857 | झांसी , ग्वालियर | ह्यूरोज | 3 अप्रैल , 1858 |
लियाकत अली | 1857 | इलाहाबाद , बनारस | कर्नल नील | 1858 |
कुँअर सिंह | अगस्त , 1857 | जगदीशपुर ( बिहार ) | विलियम टेलर मेजर विसेंट आयर | 1858 |
खान बहादुर खां | 1857 | बरेली | सर कौलिन कैंपबेल | 1858 |
मौलवी अहमद उल्ला | 1857 | फैजाबाद | 1858 | |
अजीमुल्ला | 1857 | फतेहपुर | जनरल रेनर्ड | 1858 |
विद्रोह का स्वरूप कुछ प्रमुख विचार :
इतिहासकारों तथा विद्वानों ने 1857 के विद्रोह के स्वरूप के विषय में भिन्न – भिन्न मत प्रकट किए हैं , जो निम्नलिखित हैं
1 . सर जॉन सीले ( John Seeley ) : एक संस्थापित सरकार के विरूद्ध भारतीय सेना का विद्रोह ।
2 . एल . ई . आर . रीज ( L. E. R. Rees ) : ‘ धार्मिक युद्ध ‘ ( धर्मान्धों का ईसाईयों के विरुद्ध युद्ध ) ।
3 . जे . जी . मेडले ( J. G. Medley ) : ‘ जातियों का युद्ध ’
4 . टी . आर . होम्ज ( T. R. Holmes ) : ‘ बर्बरता तथा सभ्यता के बीच युद्ध ‘ ।
5 . सर जेम्स आउन्ट्रम ( Sir James Outram ) : ‘ हिन्दू मुस्लिम षड्यंत्र ‘ ।
6. बेन्जामिन डिजरेली ( Benjamin Disraeli ) : राष्ट्रीय विद्रोह ‘ ।
7. बी . डी . सावरकर ( V. D. Sawarkar ) : ‘ सुनियोजित स्वतंत्रता संग्राम ‘ |
8 . आर . सी . मजूमदार ( R. C. Majumdar ) : ‘ सैन्य विद्रोह ‘ ( स्वतन्त्रता संग्राम नहीं था ) ।
9. डॉ . एस . एन . सेन ( S. N. Sen ) : ‘ स्वतंत्रता संग्राम ‘ |
10. डॉ . एस . बी . चौधरी ( S. B. Choudhary ) : ‘ सैनिक विप्लव और विद्रोह ( नागरिक ) ।
11. जे . एल . नेहरू ( J. L. Nehru ) : ‘ सामन्ती विद्रोह ‘ ।
12. कार्ल मार्क्स ( Karl Marx ) : ‘ राष्ट्रीय मुक्ति संघर्ष |
कुछ मुख्य बिन्दु
- विद्रोह का विस्तार दक्षिण में नर्मदा नदी तक था ।
- 1857 के विद्रोह की एक प्रमुख विशेषता थी हिन्दू – मुस्लिम एकता ।
- बहादुर शाह – द्वितीय ( जफर ) ने ‘ शहंशाह – ए- हिन्दुस्तान की उपाधि ग्रहण की । बहादुर शाह दिल्ली में प्रतीकात्मक नेता था । वास्तविक नेतृत्व सैनिकों की एक परिषद के हाथों में था , जिसका प्रधान बख्त खान था ।
- उत्तर – पश्चिम प्रांत तथा अवध में मुजफ्फरनगर और सहारनपुर को छोड़ कर सभी स्थानों पर सैन्य विद्रोह के बाद नागरिक विद्रोह ( Civil rebelion ) हुए ।
विद्रोह के दौरान भारत का गवर्नर जनरल लॉर्ड कैनिंग था ।
व्यपगत का सिद्धांतः
- वर्ष 1840 के दशक के अंत में लॉर्ड डलहौजी द्वारा पहली बार व्यपगत का सिद्धांत नामक उल्लेखनीय ब्रिटिश तकनीक का सामना किया गया था।
- इसमें अंग्रेज़ों द्वारा किसी भी शासक के नि:संतान होने पर उसे अपने उत्तराधिकारी को गोद लेने का अधिकार नहीं था, अतः शासक की मृत्यु होने के बाद या सत्ता का त्याग करने पर उसके शासन पर कब्ज़ा कर लिया जाता था।
- इन समस्याओं में ब्राह्मणों के बढ़ते असंतोष को भी शामिल किया गया था, जिनमें से कई लोग राजस्व प्राप्ति के अधिकार से दूर हो गए थे या अपने लाभप्रद पदों को खो चुके थे।
दमन और विद्रोह
- 1857 का विद्रोह एक वर्ष से अधिक समय तक चला। इसे 1858 के मध्य तक दबा दिया गया था।
- मेरठ में विद्रोह भड़कने के 14 महीने बाद 8 जुलाई, 1858 को लॉर्ड कैनिंग द्वारा शांति की घोषणा की गई।
विद्रोह के स्थान | भारतीय नेता | ब्रिटिश अधिकारी जिन्होंने विद्रोह को दबा दिया |
दिल्ली | बहादुर शाह द्वितीय | जॉन निकोलसन |
लखनऊ | बेगम हजरत महल | हेनरी लारेंस |
कानपुर | नाना साहेब | सर कोलिन कैंपबेल |
झाँसी और ग्वालियर | लक्ष्मी बाई और तात्या टोपे | जनरल ह्यूग रोज |
बरेली | खान बहादुर खान | सर कोलिन कैंपबेल |
इलाहाबाद और बनारस | मौलवी लियाकत अली | कर्नल ऑनसेल |
बिहार | कुँवर सिंह | विलियम टेलर |
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